उत्तराखंड में सामने आई प्रॉपर्टी डीलरों और बिल्डरों की धांधली की हकीकत, आयोजित कार्यशाला में रेरा अध्यक्ष ने खुद की इसकी पुष्टि,,,,,,

उत्तराखंड में सामने आई प्रॉपर्टी डीलरों और बिल्डरों की धांधली की हकीकत, आयोजित कार्यशाला में रेरा अध्यक्ष ने खुद की इसकी पुष्टि,,,,,,

उत्तराखंड में सामने आई प्रॉपर्टी डीलरों और बिल्डरों की धांधली की हकीकत, आयोजित कार्यशाला में रेरा अध्यक्ष ने खुद की इसकी पुष्टि,,,,,,

देहरादून: उत्तराखंड में राजधानी दून के साथ ही सभी मैदानी क्षेत्रों में रियल एस्टेट सेक्टर में बीते कुछ वर्षों में बूम आया है। धड़ाधड़ प्लॉटिंग से लेकर ग्रुप हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्ट की बाढ़ आ गई है। लेकिन, उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रेरा) के गठन के करीब 08 वर्षों बाद भी फ्लैट/संपत्ति खरीदारों के हितों का सवाल अपनी जगह कायम है। अच्छी बात यह है कि रेरा की ओर से न सिर्फ सभी हितधारकों की जागरूकता को लेकर कार्यशाला आयोजित की गई, बल्कि स्वयं रेरा अध्यक्ष रबिंद्र पंवार ने बयां किया कि बिल्डरों से लेकर रियल एस्टेट एजेंटों में सुधार की गुंजाइश कहां कहां है।

रेरा की हितधारक कार्यशाला में नए ब्रोशर का विमोचन करते मुख्य सचिव आनंद बर्धन, रेरा अपीलेट ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस आरसी खुल्बे , रेरा अध्यक्ष रबिंद्र पंवार, सदस्य नरेश सी मठपाल और अभिताभ मैत्रा।
इसके लिए रेरा अध्यक्ष रबिंद्र पंवार और सदस्य नरेश सी मठपाल ने तमाम नियम कानून गिनाए। साथ ही कड़ी कार्रवाई की तरफ भी इशारा किया। वहीं, रियल एस्टेट अपीलेट ट्रिब्यूनल अथारिटी के अध्यक्ष जस्टिस आरसी खुल्बे ने वाद दायर करने से पहले आपसी समझौते का मंच प्रदान करने का सुझाव भी दिया। कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि शरीक हुए मुख्य सचिव आनंद बर्धन ने आश्वासन दिया कि कार्यशाला में जो भी बिंदु उठाए गए हैं और सुझाव दिए गए हैं, उनकी पूर्ति के भरसक प्रयास किए जाएंगे।

रेरा की कार्यशाला को संबोधित करते मुख्य सचिव आनंद बर्धन।
जगह-जगह प्रॉपर्टी डीलर, पंजीकरण सिर्फ 452 का
राजधानी दून में गली-मोहल्लों तक में प्रापर्टी डीलर भरे पड़े हैं। प्रदेश के अन्य शहरों का भी यही हाल है। हालांकि, इसके बाद भी रेरा में प्रदेशभर में सिर्फ 452 ही रियल एस्टेट एजेंट पंजीकृत हैं। यह बात एक चिंता के रूप में स्वयं उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रेरा) के अध्यक्ष रबिंद्र पंवार ने हितधारकों की कार्यशाला में उठाई।

रेरा अध्यक्ष की यह चिंता इसलिए भी बड़ी है, क्योंकि प्रापर्टी डीलर ही वह पहली कड़ी होते हैं, जो जमीन या संपत्ति खरीदार को भरोसे में लेते हैं। कई दफा भोले-भाले नागरिकों को कृषि भूमि, सरकारी भूमि और एक से अधिक व्यक्तियों को बेची गई जमीन चिपका दी जाती है। इस स्थिति में यदि प्रापर्टी डीलर रेरा में पंजीकृत नहीं होंगे तो धोखाधड़ी की स्थिति में नागरिकों के हितों की रक्षा कैसे होगी?

रेरा लगाएगा रोजाना 10 हजार रुपए का जुर्माना
रेरा अध्यक्ष रबिंद्र पंवार ने कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य संपत्ति खरीदारों के हितों की रक्षा करने के साथ ही बिल्डरों और रियल एस्टेट एजेंटों को नियमों की जानकारी देना भी है। ताकि विक्रेता और क्रेता के बीच अंतर कम हो और पंजीकरण की रफ्तार भी बढ़े। रेरा में पंजीकरण न कराने वाले रियल एस्टेट एजेंटों पर प्रतिदिन 10 हजार रुपए की दर से संपत्ति की कुल कीमत के 05 प्रतिशत तक जुर्माना लगाने का प्राविधान है। ऐसे में अब रेरा सख्त कार्रवाई करने के मूड में है।

बिल्डरों के लिए नियम कई, पालन गिने चुने कर रहे
रियल एस्टेट के हितधारकों की कार्यशाला में यह बात प्रमुखता से उठाई गई कि रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन कायम करने के लिए एक्ट में कई प्राविधान किए गए हैं। बावजूद इसके बिल्डर उनका पालन नहीं करते हैं। इसके अलावा रेरा वाद दर्ज करने से पूर्व विधिवत समझौते की राह खोलने की पैरवी भी की गई।

जब भी कोई फ्लैट खरीदार रेरा वाद दायर करता है तो सुनवाई में समय, श्रम और धनराशि भी खर्च होती है। ऐसे में रियल एस्टेट अपीलेट ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष (पूर्व न्यायमूर्ति नैनीताल हाई कोर्ट) आरसी खुल्बे ने कहा कि रेरा में वाद दर्ज करने से पूर्व काउंसिलिंग के माध्यम से समझौता कराने का एक मंच होना चाहिए। उन्होंने सरकार को इस दिशा में काम करने का सुझाव दिया। इस बात समर्थन करते हुए रेरा अध्यक्ष पंवार ने कहा कि बिल्डरों को भी अपने स्तर पर ऐसे मंच की शुरुआत करनी चाहिए। ताकि छोटे स्तर के वाद को वह अपने स्तर पर ही सुलझा सकें।

रेरा सदस्य नरेश सी मठपाल ने अपने प्रस्तुतीकरण में रियल एस्टेट सेक्टर पर लागू नियम कानून की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संपत्ति खरीदारों के हितों की रक्षा में बैंकों की भूमिका भी अहम है। तय किया गया है कि बिल्डर को फ्लैट खरीदारों से ली गई धनराशि को अलग बैंक खाते में रखना होगा। परियोजना की 70 प्रतिशत धनराशि इस खाते में जमा करनी होगी। निकासी के लिए इंजिनियर, आर्किटेक्ट और सीए का संयुक्त सहमति पत्र अनिवार्य है। साथ ही वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह माह के भीतर परियोजना से इतर सीए से ऑडिट करवाना होगा। कुछ ही बिल्डर ऐसा कर रहे हैं और इस प्रैक्टिस को बढ़ाने की जरूरत है। बैंकों को भी इस पर ध्यान देना चाहिए।

बिल्डरों पर लागू होते हैं यह प्रमुख नियम
– यदि परियोजना समय पर पूरी नहीं हो पा रही है तो उसके एक्सटेंशन के लिए 03 माह पूर्व ही आवेदन कर दिया जाए।
– दूसरे एक्सटेंशन के लिए दो तिहाई संपत्ति खरीदारों की सहमति आवश्यक होगी। परियोजना में बड़े बदलाव के लिए भी यही नियम लागू होगा।
– बुकिंग के समय संपत्ति मूल्य से 10 प्रतिशत से अधिक राशि नहीं वसूल की जाएगी।
– रेरा में पंजीकरण न कराने पर परियोजना लागत का 10 प्रतिशत जुर्माना लगाया जाएगा। निरंतर उल्लंघन करने पर 03 साल की जेल या साथ में जुर्माने को 10 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।

अब तक क्या रियल एस्टेट की 165 ही परियोजनाएं पूर्ण
रेरा में जब भी किसी रियल एस्टेट परियोजना का पंजीकरण किया जाता है तो उसके लिए नक्शा संबंधित विकास प्राधिकरण से पास होना आवश्यक है। इसी तरह कोई परियोजना तब पूरी मानी जाती है, जब वह विकास प्राधिकरण कंप्लीशन सर्टिफिकेट (कार्यपूर्ति प्रमाण पत्र) जारी कर देता है। प्रदेश में रियल एस्टेट परियोजनाओं का हाल देखा जाए तो महज 28 में ही इस नियम का पालन किया गया है।

रेरा अध्यक्ष रबिंद्र पंवार के अनुसार राज्य में 576 रियल एस्टेट परियोजनाओं का पंजीकरण कराया गया है। हालांकि, अभी कंप्लीशन सर्टिफिकेट सिर्फ 165 के करीब ही प्राप्त हो पाया है। इस गति को बढ़ाने के निर्देश सभी बिल्डरों को दिए गए हैं। कंप्लीशन सर्टिफिकेट का दूसरा पहलू यह है कि नियमों के पालन के डर से भी बिल्डर हाथ बांधे रहते हैं। क्योंकि, जब वह विकास प्राधिकरण से इसकी मांग करते हैं तो संबंधित अभियंता परियोजना का स्थलीय निरीक्षण करते हैं। स्वीकृत नक्शे के हिसाब से हर एक निर्माण की तस्दीक कर प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। इस तरह के मामले भी सामने आते हैं कि बिल्डर निर्माण में स्वीकृत नक्शे का उल्लंघन करते हैं। ऐसे में कंप्लीशन सर्टिफिकेट प्राप्त करने में अड़चन पैदा होती है।

पैनल डिस्कशन के दौरान सवाल करते एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल।

स्थानीय संसाधनों के हिसाब से ही करें प्रचार
रेरा की कार्यशाला में पैनल डिस्कशन और ओपन सेशन का आयोजन भी किया गया। पैनल डिस्कशन में एसडीसी (सोशल डेवलपमेंट फार कम्युनिटीज) फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने विषय विशेषज्ञों के सवाल किए। इस दौरान एक सवाल के जवाब में रेरा सदस्य नरेश सी मठपाल ने कहा कि बिल्डरों को परियोजना का विकास करते समय स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता और अन्य पहलुओं का ध्यान रखना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि आपने परियोजना में स्विमिंग पूल दिखाया है और उस पूरे क्षेत्र में पानी की भारी किल्लत हो। परियोजना के ब्रोशर वास्तविकता के करीब होने चाहिए। इसके अलावा ओपन सेशन में विभिन्न वर्ग से जुड़े हितधारकों ने सवाल किए और अपनी शंका का समाधान किया। कार्यशाला में रेरा सदस्य अभिताभ मैत्रा, नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल के उत्तराखंड प्रतिनिधि मनोज जोशी, अधिवक्ता अमन रब, सिद्धार्थ अपार्टमेंट्स और पैसिफिक गोल्फ एस्टेट से एसके जैन, कर्नल रोहित मिश्रा (रिटा) आदि उपस्थित रहे।

abpindianews

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