हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर महादेव मंदिर जहां माता गोरा ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने हेतु की हजारों वर्षों तक तपस्या,,,,,

हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर महादेव मंदिर जहां माता गोरा ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने हेतु की हजारों वर्षों तक तपस्या,,,,,

हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर हादेव मंदिर जहां माता गोरा ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने हेतु की हजारों वर्षों तक तपस्या,,,,,

 

हरिद्वार (गौरव चक्रपाणी): धर्मनगरी हरिद्वार हरिद्वार में स्थित श्री बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर को आदिकाल से ही माता गोरा की तपस्या स्थली और बाबा भोलेनाथ के प्रिय  स्थान के रूप में जाना जाता है।

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भगवान शिव के जीवन से जुड़ी कई कथाओं में हरिद्वार का जिक्र प्रमुखता से होता है। एक मान्यता के अनुसार हरिद्वार के बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में बाबा भोलेनाथ का जुड़ाव इसी बात से समझा जा सकता है कि शिव और पार्वती का प्रथम मिलन यहीं हुआ था।

पुराणों में बताया गया है कि पहले शिव ने दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती को पत्नी के रूप में पाया और फिर उन्हीं माता सती ने यज्ञ कुंड में भस्म होकर हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया।

बिल्व पर्वत के बारे में कहा जाता है कि, माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। जिसके लिए देव ऋषि‍ नारद ने पार्वती को एक सलाह दी थी। कि तुम बिल्व पर्वत पर जाकर महादेव की आराधना करें।

देव ऋषि के सुझाव को मानकर माता पार्वती ने हरिद्वार स्थित बेलपत्रों से घिरे मनोरम बिल्व पर्वत पर आकर भगवान शिव की वर्षो तक कठोर तपस्या की और अपनी कठीन तपस्या के बल पर भोलेनाथ को प्रसन्न कर दोबारा उनकीं पत्नी बनने का वरदान मांगा था।

पुराणों के अनुसार यह स्थान विश्व प्रसिद्ध हर की पैड़ी,,,,,,

से थोड़ी ही दूरी पर बिल्व पर्वत है, जहां प्रतिष्ठित बिल्वकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस स्थान पर बाबा भोलेनाथ सपरिवार लिंग रूप में बिल्वकेश्वर महादेव विराजे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि, सावन‌ और नवरात्रों में यहां अगर भक्त भोले बाबा के दर्शन करते हैं तो उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने यहां हजारों वर्षों तक केवल बेलपत्र खाकर भगवान शिव की आराधना की। तपस्या के दौरान जब माता गोरा को पीने के पानी की समस्या हुई तब देवताओं के आग्रह पर स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने अपने कमंडल से गंगा की जलधारा प्रकट की थी। जो स्थान आज गौरी कुंड के नाम से विश्वविख्यात है।

 

यह अति प्राचीन मातापुर की तपस्थली एवं भगवान भोलेनाथ के मंद पसंद स्थानो में से एक है। गौरीकुंड नामक यह स्थान बिल्वकेश्वर मंदिर से महज कुछ कदमो की दूरी पर गौरी कुंड के नाम से विश्व में प्रसिद्ध है।

मान्यता है कि तपस्या के दौरान माता पार्वती इसी गौरी कुंड में स्नान किया करती थीं। इसके अलावा कुंड का पानी पिया करती थीं। भगवान शिव ने माता पार्वती से प्रसन्न होकर बिल्वकेश्वर के रूप में विराजने का आशीर्वाद दिया था। इसी लिए सावन और नवरात्रों में लोग दूर-दूर से यहां बेलपत्र चढ़ाने के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

 

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