हरिद्वार मौनी अमावस्या पर श्रद्धालुओं ने लगाई गंगा में डुबकी

हरिद्वार मौनी अमावस्या पर श्रद्धालुओं ने लगाई गंगा में डुबकी

abpindianews, हरिद्वार- मौनीअमावया
माघ मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है, इसे मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। मौनी अमावस्या के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं इसलिए यह दिन एक संपूर्ण शक्ति से भरा हुआ और पावन अवसर बन जाता है। इस दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है, इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। मकर राशि, सूर्य तथा चन्द्रमा का योग इसी दिन होता है, अत: इस अमावस्या का महत्व और बढ़ जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों व तीर्थ स्थलों में स्नान करने से पुण्य फलोंं की प्राप्ति होती है।

हरिद्वार कुंभ 2021 के दूसरे स्नान मौनी अमावस्या पर तीर्थ नगरी हरिद्वार में बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं ने हर की पौड़ी पर गंगा में श्रद्धा और आस्था की पावन डुबकी लगाई ,इस अवसर पर श्रद्धालु कड़ाके की ठंड के बावजूद हर की पैड़ी पर बड़ी तादाद में पहुंचे और गंगा पूजा की और दान दिया। माघ महीने की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं इसका बहुत महत्व है और इस दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।

इस दिन मौन व्रत रखने का भी विधान रहा है। इस व्रत का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इंद्रियों को अपने वश में रखना चाहिए। धीरे-धीरे अपनी वाणी को संयत करके अपने वश में करना ही मौन व्रत है। कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं। वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कितने समय के लिए वह मौन व्रत रखना चाहता है। कई व्यक्ति एक दिन, कोई एक महीना और कोई व्यक्ति एक वर्ष तक मौन व्रत धारण करने का संकल्प कर सकता है।

इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए। वाणी को नियंत्रित करने के लिए यह शुभ दिन होता है। मौनी अमावस्या को स्नान आदि करने के बाद मौन व्रत रखकर एकांत स्थल पर जाप आदि करना चाहिए। इससे चित्त की शुद्धि होती है। आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति स्नान तथा जप आदि के बाद हवन, दान आदि कर सकता है। इससे पापों का नाश होता है। इस दिन गंगा स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है।

माघ मास की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि दोनों का ही महत्व इस मास में होता है। इस मास में यह दो तिथियां पर्व के समान मानी जाती हैं। समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों के मध्य संघर्ष में जहां-जहां अमृत गिरा था, उन स्थानों पर स्नान करना पुण्य कर्म माना जाता है।

मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जप करने चाहिए। यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है, तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं। पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है। स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें।

इस दिन व्यक्ति प्रण करें कि वह झूठ, छल-कपट आदि की बातें नहीं करेगें। इस दिन से व्यक्ति को सभी बेकार की बातों से दूर रहकर अपने मन को सबल बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इससे मन शांत रहता है और शांत मन शरीर को सबल बनाता है। इसके बाद व्यक्ति को इस दिन गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्रोच्चारण के साथ अथवा श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए। दान में गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करनी चाहिए।

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