क्यों मनाया जाता है *अक्षय तृतीया* का त्यौहार, आईए जानते हैं इस दिन क्या करें और क्या ना करें,,,
क्यों मनाया जाता है *अक्षय तृतीया* का त्यौहार, आईए जानते हैं इस दिन क्या करें और क्या ना करें,,,
देहरादून: अक्षय तृतीया का त्यौहार वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि पर मनाया जाता है।अक्षय तृतीया को उत्तर भारत में *आखा तीज* भी कहते है । अक्षय तृतीया की तिथि साढेतीन सिद्ध मूहूर्तों में से एक पूर्ण मुहूर्त है । इस दिन सत्ययुग समाप्त होकर त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ, ऐसा माना जाता है । इस कारण से यह एक संधिकाल है । मुहूर्त कुछ ही क्षणों का होता है; परंतु अक्षय तृतीया संधिकाल होने से उसका परिणाम २४ घंटे तक रहता है । इसलिए यह पूरा दिन ही अच्छे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है ।
अक्षय तृतीया के दिन दान – पुण्य का महत्त्व
पुराण ‘मदनरत्न’ नामक संस्कृत ग्रंथ में बताए अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्त्व बताया है । वह कहते हैं,,,,,
*अस्यां तिथौ क्षयमुपैति हुतं न दत्तं*
*तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया* ।
*उद्दिश्य दैवतपितॄन्क्रियते मनुष्यैः*
*तच्चाक्षयं भवति भारत सर्वमेव* ।।
– मदनरत्न
अर्थात, इस तिथि को दिए हुए दान तथा किए गए हवन का क्षय नहीं होता । इसलिए मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है । देवों तथा पितरों के लिए इस तिथि पर जो कर्म किया जाता है, वह अक्षय; अर्थात अविनाशी होता है ।’
अक्षय तृतीया के दिन दिए गए दान का कभी क्षय नहीं होता । अक्षय तृतीया के दिन पितरों के लिए आमान्न अर्थात दान दिए जाने योग्य कच्चा अन्न, उदककुंभ; अर्थात जल भरा कलश, ‘खस’ का पंखा, छाता, पादत्राण अर्थात जूते-चप्पल आदि वस्तुओं का दान करने के लिए पुराणों में बताया है ।
सत्पात्र व्यक्ति को ही क्यों दान देना चाहिए ?
अक्षय तृतीया के दिन किए दान से व्यक्ति के पुण्य का संचय बढता है । पुण्य के कारण व्यक्ति को स्वर्गप्राप्ति हो सकती है; परंतु स्वर्गसुख का उपभोग करने के उपरांत पुनः पृथ्वी पर जन्म लेना पडता है । मनुष्य का अंतिम ध्येय ‘पुण्यप्राप्ति कर स्वर्गप्राप्ति करना’ ही नहीं; अपितु ‘पाप-पुण्य के परे जाकर ईश्वरप्राप्ति करना’ होता है । इसलिए मनुष्य को सत्पात्रे दान करना चाहिए । सत्पात्र व्यक्ति को दान करने पर यह कर्म ‘अकर्म कर्म’ (अर्थात पाप-पुण्य का नियम लागू नहीं होता) हो जाता है तथा ऐसा करने से मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है, अर्थात वह स्वर्गलोक में न जाकर उच्चलोक में जाता है ।
अक्षय तृतीया के दिन सत्पात्र दान दें !
अक्षय तृतीया के दिन दिए गए दान का कभी क्षय नहीं होता ।
संत, धार्मिक कार्य करनेवाले व्यक्ति, समाज में धर्मप्रसार करनेवाली आध्यात्मिक संस्था तथा राष्ट्र एवं धर्म जागृति करनेवाले धर्माभिमानी को दान करें, कालानुरूप यही सत्पात्रे दान है ।
अक्षय तृतीया का महत्त्व
1.अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान हयग्रीव अवतार, भगवान परशुराम अवतार एवं भगवान नरनारायण अवतार का प्रकटीकरण हुआ है ।
2.इस तिथि पर देवता-पितर के निमित्त जो कर्म किए जाते हैं, वे संपूर्णतः अक्षय (अविनाशी) होते हैं । (संदर्भ : ‘मदनरत्न’)
3.अक्षय तृतीया की संपूर्ण अवधि, शुभ मुहूर्त ही होती है । इसलिए इस दिन बिना पंचांग देखे शुभ एवं मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषण की खरीदारी अथवा घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीदारी की जा सकती हैं । नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना अथवा उद्घाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है । इस दिन गंगा स्नान तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं ।
4.अक्षय तृतीया संधीकाल है । हिन्दू धर्म में संधिकाल का महत्त्व बताया गया है, कि संधिकाल में की गई साधना का फल अनेक गुना मिलता है । प्रत्येक दिन के प्रातःकाल, संध्याकाल तथा पूर्णिमा एवं अमावास्या तिथि के, सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण और कुंभ इत्यादि संधिकाल में साधना करने का महत्त्व बताया गया है । उसी प्रकार हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार एक युग का अंत एवं दूसरे युग का प्रारंभ दिन संधिकाल हुआ इस कारण वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है ।
5.यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ का दिन भी है ।
*6.अक्षय तृतीया के दिन ये अवश्य करें !*
1. पवित्र जल में स्नान
2. श्रीविष्णुपूजा, जप एवं श्री हरि चिंतन
3. तिलतर्पण
4. पूर्वजोंका पूजन
5. बीज बोना एवं वृक्षारोपण
6. आध्यात्मिक उन्नति के लिए भगवान का अनुकूल सेवा करना
7.जैन बंधुओं की दृष्टि से अक्षय तृतीया एक महान धार्मिक पर्व !
8 .अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा।
9.इस दिन भगवान विष्णु के चरणों से धरती पर गंगा अवतरित हुई। सतयुग, द्वापर व त्रेतायुग के प्रारंभ की गणना इस दिन से होती है।
10.शास्त्रों की इस मान्यता को वर्तमान में व्यापारिक रूप दे दिया गया है जिसके कारण अक्षय तृतीया के मूल उद्देश्य से हटकर लोग खरीदारी में लगे रहते हैं। वास्तव में यह वस्तु खरीदने का दिन नहीं है। वस्तु की खरीदारी में आपका संचित धन खर्च होता है।
11.“न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गंगयां समम्।।”
वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है।
12.वैशाख मास की विशिष्टता इसमें आने वाली अक्षय तृतीया के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाए जाने वाले इस पर्व का उल्लेख विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण तथा भविष्य पुराण आदि में मिलता है।
13.यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को ‘दान’ इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
14.वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आखातीज के रुप में मनाया जाता है भारतीय जनमानस में यह अक्षय तीज के नाम से प्रसिद्ध है।
15.पुराणों के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान,दान,जप,स्वाध्याय आदि करना शुभ फलदायी माना जाता है इस तिथि में किए गए शुभ कर्म का फल क्षय नहीं होता है इसको सतयुग के आरंभ की तिथि भी माना जाता है इसलिए इसे’कृतयुगादि’ तिथि भी कहते हैं ।
16.मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत पुष्प दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा संतान भी अक्षय बनी रहती है।
17.कलियुग के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करके दान अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से निश्चय ही अगले जन्म में समृद्धि, ऐश्वर्य व सुख की प्राप्ति होती है।
18.भविष्य पुराण के एक प्रसंग के अनुसार शाकल नगर रहने वाले एक वणिक नामक धर्मात्मा अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण श्रद्धा भाव से स्नान ध्यान व दान कर्म किया करता था जबकि उसकी पत्नी उसको मना करती थी,मृत्यु बाद किए गए दान पुण्य के प्रभाव से वणिक द्वारकानगरी में सर्वसुख सम्पन्न राजा के रुप में अवतरित हुआ।
19.इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर सामर्थ्य अनुसार जल,अनाज,गन्ना,दही,सत्तू,फल,सुराही,हाथ से बने पंखे वस्त्रादि का दान करना विशेष फल प्रदान करने वाला माना गया है।
20.इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। सतयुग, त्रेता और कलयुग का आरंभ इसी तिथि को हुआ और इसी तिथि को द्वापर युग समाप्त हुआ था।
21.ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य इसी दिन हुआ था। इस दिन श्वेत पुष्पों से पूजन कल्याणकारी माना जाता है।
22.दान करने से जाने-अनजाने हुए पापों का बोझ हल्का होता है और पुण्य की पूंजी बढ़ती है। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुणा आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है।
23.इस तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। अक्षय तृतीया को ही वृंदावन में श्रीबिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं। और इसी दिन नंदगांव में पवन सरोवर प्रकट हुआ था।