मकर संक्रांति का त्योहार एवं महत्व
मकर संक्रांति हिंदुओं का सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। मकर संक्रांति का जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही वैज्ञानिक महत्व है। दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का योग बनता है, लेकिन इसके अलावा भी कई सारे बदलाव आते हैं। मकर संक्रांति का संबंध केवल धर्म से ही नहीं, बल्कि अन्य चीजों से भी जुड़ा है, जिसमें वैज्ञानिक जुड़ाव के साथ-साथ कृषि से भी जुड़ाव रहता है। ज्योतिष ने बताया कि मकर संक्रांति के बाद जो सबसे पहले बदलाव आता है वह है दिन का लंबा होना और रातें छोटी होनी लगती हैं। मकर संक्रांति के दिन सभी राशियों के लिए सूर्य फलदायी होते हैं, लेकिन मकर और कर्क राशि के लिए ज्यादा लाभदायक हैं!
इस साल दान-पुण्य का यह महापर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र में संक्रांति का शाब्दिक अर्थ सूर्य या किसी भी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश या संक्रमण बताया गया है। मकर संक्रांति पर्व भगवान सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का संधि काल है। उत्तरायण में पृथ्वीवासियों पर सूर्य का प्रभाव तो दक्षिणायन में चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है। सूर्यदेव छह माह उत्तरायण (मकर से मिथुन राशि तक) व छह माह दक्षिणायन (कर्क से धनु राशि तक) रहते हैं। उत्तरायण देवगण का दिन तो दक्षिणायन रात्रि मानी जाती है।
मकर संक्रांति पर करें किस चीज का दान?
मकर संक्रांति के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना गया है। इस दिन से सभी शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी समाप्त हो जाता है। इस पर्व पर खिचड़ी सेवन और खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व बताया जाता है।
खिचड़ी के फायदे
मकर संक्रांति के दिन प्रसाद के रूप में खाए जाने वाली खिचड़ी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है। खिचड़ी से पाचन क्रिया सुचारु रूप से चलने लगती है। इसके अलावा आगर खिचड़ी मटर और अदरक मिलाकर बनाएं तो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है साथ ही बैक्टिरिया से भी लड़ने में मदद करती है।
मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक तथ्य
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। साथ ही महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था। यही वजह है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में हर साल मेला लगता है
मकर संक्रांति से बदलता है वातावरण
मकर संक्रांति के बाद नदियों में वाष्पन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिससे कई सारी शरीर के अंदर की बीमारियां दूर हो जाती हैं। इस मौसम में तिल और गुड़ खाना काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर को गर्म रखता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तारायण में सूर्य के ताप शीत को कम करता है।
मकर संक्रांति का महत्व
इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी भूलाकर उनके घर गए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से व्यक्ति का पुण्य प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है। इस दिन से मलमास खत्म होने के साथ शुभ माह प्रारंभ हो जाता है। इस खास दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है।
मकर संक्रांति, सूर्य उत्तरायण, खिचड़ी, दान पुण्य और महत्व, जानें इसके बारे में सबकुछ
Makar Sankranti 2021 Facts मकर संक्रांति हिंदुओं का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। मकर संक्रांति का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक महत्व है। मकर संक्रांति का संबंध केवल धर्म से ही नहीं बल्कि अन्य चीजों से भी जुड़ा है जिसमें वैज्ञानिक जुड़ाव के साथ कृषि से भी जुड़ाव है। मकर संक्रांति हिंदुओं का सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है।
मकर संक्रांति का जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही वैज्ञानिक महत्व है। दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का योग बनता है, लेकिन इसके अलावा भी कई सारे बदलाव आते हैं। मकर संक्रांति का संबंध केवल धर्म से ही नहीं, बल्कि अन्य चीजों से भी जुड़ा है, जिसमें वैज्ञानिक जुड़ाव के साथ-साथ कृषि से भी जुड़ाव रहता है। ज्योतिषाचर्या ने बताया कि मकर संक्रांति के बाद जो सबसे पहले बदलाव आता है वह है दिन का लंबा होना और रातें छोटी होनी लगती हैं। मकर संक्रांति के दिन सभी राशियों के लिए सूर्य फलदायी होते हैं, लेकिन मकर और कर्क राशि के लिए ज्यादा लाभदायक हैं।
मकर संक्रांति के अलग-अलग नाम
मकर संक्रांति का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन हर राज्य में इसका नाम अलग-अलग होता है। कर्नाटक में संक्रांति, तमिलनाडु और केरल में पोंगल, पंजाब, हरियाणा में माघी, गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण, उत्तराखंड में उत्तरायणी होता है। वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से जानते हैं। वैसे पंजाब में इसे लोहड़ी के नाम से सक्रांति के एक दिन पहले ही मनाया जाता है।
संक्रांति का अर्थPlayv
इस साल दान-पुण्य का यह महापर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र में संक्रांति का शाब्दिक अर्थ सूर्य या किसी भी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश या संक्रमण बताया गया है। मकर संक्रांति पर्व भगवान सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का संधि काल है। उत्तरायण में पृथ्वीवासियों पर सूर्य का प्रभाव तो दक्षिणायन में चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है। सूर्यदेव छह माह उत्तरायण (मकर से मिथुन राशि तक) व छह माह दक्षिणायन (कर्क से धनु राशि तक) रहते हैं। उत्तरायण देवगण का दिन तो दक्षिणायन रात्रि मानी जाती है।
सूर्य कब होता है उत्तरायण?
ज्योतिष के अनुसार किसी की कुंडली में आठों ग्रह प्रतिकूल हों तो उत्तरायण सूर्य आराधना मात्र से सभी मनोनुकूल हो जाते हैं। सूर्य के उत्तरायण काल ही शुभ कार्य के जाते हैं। सूर्य जब मकर, कुंभ, वृष, मीन, मेष और मिथुन राशि में रहता है, तब उसे उत्तरायण कहा जाता है। इसके अलावा सूर्य जब सिंह, कन्या, कर्क, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में रहता है, तब उसे दक्षिणायन कहते हैं। इस वजह से इसका राशियों पर भी गहरा असर पड़ता है।
मकर संक्रांति पर करें किस चीज का दान?
मकर संक्रांति के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना गया है। इस दिन से सभी शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी समाप्त हो जाता है। इस पर्व पर खिचड़ी सेवन और खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व बताया जाता है।
खिचड़ी के फायदे
मकर संक्रांति के दिन प्रसाद के रूप में खाए जाने वाली खिचड़ी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है। खिचड़ी से पाचन क्रिया सुचारु रूप से चलने लगती है। इसके अलावा आगर खिचड़ी मटर और अदरक मिलाकर बनाएं तो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है साथ ही बैक्टिरिया से भी लड़ने में मदद करती है।
मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक तथ्य
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। साथ ही महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था। यही वजह है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में हर साल मेला लगता है।
आर्युवेद में भी है मकर संक्रांति का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाएं कई बीमारियों की कारण बन सकती हैं, इसलिए प्रसाद के तौर पर खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने का प्रचलन है। तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने से शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इन सभी चीजों के सेवन से शरीर के अंदर गर्मी भी बढ़ती है। 14 जनवरी मकर संक्रांति के साथ ही ठंड के कम होने की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर भी पड़ा है।
मकर संक्रांति से बदलता है वातावरण
मकर संक्रांति के बाद नदियों में वाष्पन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिससे कई सारी शरीर के अंदर की बीमारियां दूर हो जाती हैं। इस मौसम में तिल और गुड़ खाना काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर को गर्म रखता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तारायण में सूर्य के ताप शीत को कम करता है।
मकर संक्रांति का महत्व
इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी भूलाकर उनके घर गए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से व्यक्ति का पुण्य प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है। इस दिन से मलमास खत्म होने के साथ शुभ माह प्रारंभ हो जाता है। इस खास दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है।