होली पर होलाष्टको में आठ दिन न करे शुभ, मांगलिक और नए कार्य , आईए जानते हैं क्यों,,,,

होली पर होलाष्टको में आठ दिन न करे शुभ, मांगलिक और नए कार्य , आईए जानते हैं क्यों,,,,

होली पर होलाष्टको में आठ दिन न करे शुभ, मांगलिक और नए कार्य , आईए जानते हैं क्यों,,,,

रंगों के त्योहार होली पर होली से 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं। इस समय दुविधा की स्थित में किसी भी प्रकार के नए व शुभ काम में दोष उत्पन्न हो सकता है। इसलिए धर्मशास्त्र के जानकार इन आठ दिनों मैं किसी भी नए और मांगलिक कार्य को छोड़ने की सलाह देते हैं।

देहरादून – धार्मिक मान्यता के अनुसार 17 से 24 मार्च तक होलाष्टक रहेगा। होली से पहले होलाष्टक के इन आठ दिनों में शुभ, मांगलिक व नए कार्य नहीं होते हैं। हालांकि धर्मशास्त्रीय अभिमत में होलाष्टक का प्रभाव देश के कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में ही मान्य है। शेष हिस्से में इसका दोष मान्य नहीं है। लोग केवल आस्था के चलते इसका पालन करते हैं।

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक के माने जाते हैं। मान्यता है इन आठ दिनों में शुभ, मांगलिक तथा नए कार्यों की शुरुआत नहीं करना चाहिए। धार्मिक व लोकमान्यता में होलाष्टक को लेकर अलग-अलग मत है। पंचांगकर्ता व ज्योतिर्विद पं.आनंदशंकर व्यास ने बताया व्यास, सतुलज व रावी नदी के कुछ भागों को छोड़कर देश के कहीं भी होलाष्टक मान्य नहीं है। इस अवधि में किसी भी प्रकार के कार्यों को करने में संकोच नहीं करना चाहिए।

मान्यता है फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है। इस वजह से इन आठ दिन में मानव मस्तिष्क विकारों व शंकाओं से घिरा रहता है। दुविधा की स्थित में किसी भी प्रकार के नए व शुभ काम में दोष उत्पन्न हो सकता है। इसलिए धर्मशास्त्र के जानकार इन आठ दिनों को छोड़ने की सलाह देते हैं। 

होलाष्टक की मान्यता 

होलाष्टक व्यास, रावी, सतलुज नदियों के दोनों और निकटवर्ती क्षेत्र तथा राजस्थान के पुष्कर व इसके आसपास के हिस्से में होलाष्टक मान्य है। यहां शुभ, मांगलिक व नए कार्यों की शुरुआत करने का दोष माना गया है। देश के शेष हिस्से में रहने वाले लोग अगर चाहें, तो होलाष्टक का त्याग कर सकते हैं।

 

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