उत्‍तराखंड में मौजूद है कॉर्न विलेज ऑफ इंडिया, एक बार यहाँ गए तो फ‍िर नहीं करेगा लौटने का मन,,,,

उत्‍तराखंड में मौजूद है कॉर्न विलेज ऑफ इंडिया, एक बार यहाँ गए तो फ‍िर नहीं करेगा लौटने का मन,,,,

उत्‍तराखंड में मौजूद है कॉर्न विलेज ऑफ इंडिया, एक बार यहाँ गए तो फ‍िर नहीं करेगा लौटने का मन,,,,

देहरादून: मसूरी के पास स्थित सैंजी गांव जिसे कॉर्न विलेज के नाम से भी जाना जाता है अपनी मक्का की खेती और अनूठी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ घरों को मक्का के झुंडों से सजाया जाता है जो इसकी सुंदरता को बढ़ाते हैं। पर्यटक यहाँ मक्का से बने पारंपरिक व्यंजन उसन्यूड़ा का स्वाद ले सकते हैं और स्थानीय त्योहारों में भाग ले सकते हैं।

हमारा देश भारत विविधताओं का देश है। यहां थोड़ी दूरी के बाद बोली भाषा, खानपान, वेशभूषा, रीतिरिवाज और मान्यताएं अलग अलग होती है तो हमारे देश को विशिष्ट पहचान प्रदान करती हैं जैसे मसूरी से मात्र बीस किलोमीटर की दूरी पर टिहरी जिले में बसा सुंदर गांव सैंजी है। जिसकी पहली झलक ही आम आदमी के दिल में विशेष छाप छोड़ जाती है।

यह मात्र एक कॉर्न विलेज ही नहीं है, दूर दूर तक फैली हरियाली, खेतों में लहलहाती मक्का की फसलें, लकड़ी के भवनों पर लटके मक्का के झुण्ड तथा आंगन में सूखाए जा रहे मक्का की फसल मन पर अमिट छाप छोड़ती है और इसको विशिष्ट पहचान प्रदान करती है।

मक्का के झुण्डों को इस प्रकार से भवनों पर टांगे जाते हैं जो इन भवनों की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। मक्का यहां की मुख्य फसल है जो खेतों में मध्य मई के बाद बोते हैं और फसल अगस्त में तैयार होती है तो काश्तकार इनको खेतों से लाकर इसके बाहर के छिलके को हटाकर इसके झुण्ड बनाकर आंगन में सुखाने के बाद मकानों के चारों ओर टांग देते हैं और फिर पूरे साल भर जरूरत के अनुसार निकालकर इसका सेवन करते हैं।

कच्चे मक्का से विशिष्ट पकवान तैयार किया जाता है जिसको उसन्यूड़ा कहा जाता है। इसको डोसे की विधि से तैयार किया जाता है और फिर दही और मक्खन-घी के साथ खाया जाता है।

आने का श्रेष्ठ समय
सैंजी गांव आने का श्रेष्ठ समय सितंबर-अक्टूबर होता है जब मक्का की फसल तैयार होकर काश्तकार घरों में ले आते हैं और मकानों या भवनों के चारों ओर टांग देते हैं। मानसून समाप्त होने के बाद चारों और फैली हरियाली आदमी के मन को अनूठी अनभूति प्रदान करता है।

मक्का यहां की प्रमुख फसल के साथ में मुख्य खाद्य है। इसके साथ ही यहां के स्थानीय अन्य उत्पादों में झंगोरा तथा मण्डुवा से बने स्वादिस्ट भोजन का आनंद ले सकते हैं। यहां के ग्रामीण बहुत साधारण और दोस्ताना व्यवहार कुशल होते हैं जो पर्यटकों में सुरक्षा भावना विकसित करते हैं और वह यहां से बहुत अच्छी यादें लेकर विदा होते हैं।

गांव की आबादी लगभग 550
यहां पर पक्के सीमेंट के भवनों के साथ में पुराने लकड़ी के बने भवन आज भी मौजूद हैं, जिसके लकड़ी के खंबों पर आकर्षक नक्काशी की गयी है जो भवनों को आकर्षक लुक प्रदान करते हैं। लकड़ी के पुराने भवन देवदार की लकड़ी के बने हैं।

गांव की आबादी लगभग 550 है और ग्रामीणेों का मुख्य व्यवसाय खेती के साथ में व्यापार भी है और अब गांव में ही होमस्टे की भी सुविधा है। यहां के मुख्य त्यौहार मरोज, बूढी दिवाली है। बूढी दिवाली मनाने मसूरी से भी पर्यटक पहुंचते हैं। यहां आने वाले पर्यटकों को यहां का बना हुआ शुद्ध पौष्टिक भोजन ग्रामीणों द्वारा परोसा जाता है।

चारधाम यात्रा मार्ग पर पड़ता है कॉर्न विलेज सैंजी
बीते लगभग तीन महीने से जब से मानसूनी बारिश शुरू हुई है, सैंजी गांव में आने वाले पर्यटकों की आमद प्रभावित हुई है और काफी कम संख्या में पर्यटक यहां पहुंचे हैं। जिससे ग्रामीणों की आर्थिकी पर भी प्रभाव पड़ा है।

हालांकि अब मानसून विदाई ले रहा है और इस समय पहाड़ों के चारों ओर फैलीहरियाली पर्यटकों के मन मस्तिष्क पर बहुत प्रभाव डाल रही है और ग्रामीण आने वाल समय में पर्यटकों की आमद को लेकर बहुत आशान्वित है। मानसून में क्षतिग्रस्त सड़कें धीरे धीरे ठीक हो रही है और चारधाम यात्रा फिर से शुरू हो चुकी है और कॉर्न विलेज सैंजी चारधाम यात्रा मार्ग पर पड़ता है।

ग्रामीण विनोद चौहान ने बताया कि मक्का के कारण हमारे सैंजी गांव को पूरे देश में पहचान मिली है। मक्का हमारे गांव ही नहीं पूरे क्षेत्र की मुख्य फसल है। गांव में लगभग प्रतिदिन पर्यटक आते हैं जिनको शुद्ध आर्गेनिक उत्पाद परोसे जाते हैं। इससे ग्रामीणों को रोजगार के साथ में उनकी आर्थिकी भी बढ़ रही है।

गांव के पूर्व प्रधान कुंवर सिंह सजवाण ने का कहना है कि पर्यटकों के गांव में पहुंचने से एक तो सैंजी गांव की देश दुनियां में पहचान बढ़ रही है और दूसरे ग्रामीणों की आर्थिकी में भी वृद्धि हो रही है। स्थानीय त्यौहारों पर पहुंचने वाले पर्यटकों को यहां की संस्कृति से रूबरू होने का अवसर मिलता है।

abpindianews

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